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???? गिद्धा और कथक में अभिव्यक्ति के स्तर पर समानताएं हैं : पंजाबी यूनिवर्सिटी का शोध

by Newslineexpres@1
किरणप्रीत कौर, शोधकर्ता, पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला
डा. इंदिरा बाली, गाईड, पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला

???? गिद्धा और कथक में अभिव्यक्ति के स्तर पर समानताएं हैं : पंजाबी यूनिवर्सिटी का शोध

???? पंजाबी यूनिवर्सिटी के नृत्य विभाग का एक अध्ययन
????नाट्य शास्त्र के आधार पर किया गया शोध

पटियाला, 3 अगस्त – न्यूज़लाईन एक्सप्रैस – पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला के नृत्य विभाग द्वारा किए गए एक शोध में पंजाबी लोक नृत्य गिद्धा और शास्त्रीय नृत्य कथक के बीच समानताएं पाईं और खोजी गई हैं। दोनों नृत्यों की अलग-अलग शैली होने के बावजूद इस शोध अध्ययन से पता चला है कि ये दोनों नृत्य भाव-भंगिमा की दृष्टि से एक जैसे हैं।
‘लोक नृत्य गिद्ध और शास्त्रीय नृत्य कथक: एक तुलनात्मक अध्ययन’ नाम का यह शोध कार्य शोधकर्ता किरणप्रीत कौर ने डॉ. इंदिरा बाली की देखरेख में किया।
शोधकर्ता किरणप्रीत कौर ने कहा कि लोक नृत्य गिद्ध और शास्त्रीय नृत्य कथक के बीच समानता का निष्कर्ष कला के क्षेत्र से संबंधित प्राचीन और प्रामाणिक भारतीय ग्रंथ ‘नाट्य-शास्त्र’ के आधार पर निकाला गया है, जिसकी रचना भरत मुनि ने की थी। उन्होंने कहा कि पंजाब के लोक नृत्य के क्षेत्र में यह अपनी तरह का पहला शोध कार्य है जिसमें महिलाओं के लोक नृत्य गिद्धा की तुलना नाट्य शास्त्र के संदर्भ में भारतीय शास्त्रीय नृत्य कथक से करके अध्ययन किया गया है। उन्होंने कहा कि इस शोध कार्य के नतीजों का लाभ दोनों नृत्यों के क्षेत्र से जुड़े लोगों को मिलना है।
डॉ. इंदिरा बाली ने बताया कि इस शोध परियोजना के तहत नृत्य, नृत्य और नाट्य के अंतर्गत लोक नृत्य गिद्धा और शास्त्रीय नृत्य कथक दोनों के तकनीकी पहलू की जांच करके 38 समानताएं सामने लाई गई हैं। पारस्परिकता एवं समानता के प्रमाण की दृष्टि से 25 हस्त मुद्राएँ, 1 स्थिति प्रबंधन, 1 भर्मिरि प्रकार तथा कसस्क-मासक हैं। नृत्य के संदर्भ में, नाट्य शास्त्र में दर्ज आठ नायिकाओं में से 5 नायिकाओं और 4 रसों को इन दो नृत्यों में एक दूसरे से मेल खाते हुए देखा गया है। नाट्य पक्ष में अभिनय के चार तत्वों – आंगिक, वाचिक, आहार्य, सात्विक तथा मुखाभिव्यक्ति के संयोजन की इन दोनों कलाओं में सावधानीपूर्वक तुलना की गई है। उन्होंने कहा कि यह शोध कार्य कला चिकित्सकों, शोधकर्ताओं और छात्रों के लिए दोनों नृत्यों को बेहतर ढंग से समझने और प्रस्तुत करने के लिए एक प्रामाणिक स्रोत के रूप में काम करेगा।
कुलपति प्रो. अरविंद ने इस शोध कार्य की सराहना करते हुए पर्यवेक्षक एवं शोधकर्ता को बधाई दी। इस शोध के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि इस शोध के माध्यम से जहां भाषा और संस्कृति के संयोजन का उद्देश्य पूरा होता है, वहीं नृत्य के क्षेत्र में रुचि रखने वाले कलाकार, चाहे वे लोक नृत्य से जुड़े हों या शास्त्रीय नृत्य से, यहां तक कि जो कलाकार इसमें काम करना चाहते हैं, पढ़ाते समय, उन्हें यह शोध उपयोगी लगेगा। Newsline Express

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